Tuesday, October 11, 2011

आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक

आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक?

आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक?

हम ने माना के तगाफुल न करोगे,लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक।

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़ मर्ग इलाज़,
शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक।

- मिर्ज़ा ग़ालिब

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