आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक?
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक?
हम ने माना के तगाफुल न करोगे,लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक।
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़ मर्ग इलाज़,
शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक।
- मिर्ज़ा ग़ालिब
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