बस दो लम्हों की उम्र मिली, क्या ख़ाक जिए क्या ख़ाक मरे?
हर रोज शिकायत झगड़ों की, हर रोज कहानी तारों की,
जो माँ की गोद में सिमट गया, उस बचपन को अब याद करे|
एक रात मिलो तुम चाँद तले, एक आग जले जज्बातों की,
सौ ख्वाब समेटे पलकों पर, एक दूजे की फरियाद करें|
कुछ दूर हमारे साथ चलो, कुछ वीरानी सी राहों में,
इन दो बाँहों के साये में, सब अश्कों को आज़ाद करें|
हर दर्द दिलासे देता है, हर याद कहानी कहती है,
तुम साथ रहो इन लम्हों में, हम गुलशन को आबाद करें|
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