उम्र बेहिसाब है, थोड़ी सी शराब है.
ज़िन्दगी की चाह में, ज़िन्दगी ख़राब है.
तुम नहीं तो कुछ नहीं, सीधा सा हिसाब है.
इसकी बात क्यूँ सुनें, वक्त क्या नवाब है?
फिर बदल गया समां, इश्क़ इन्कलाब है.
आईने से पूछ लूं, मूड क्यूँ खराब है?
मौत ग़म के शेल्फ़ की, आख़िरी किताब है
- दर्पण साह
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