वो अक्सर मुझसे कहती थी,
वफ़ा है ज़ात औरत की।
मगर जो मर्द होते हैं,
बहुत बेदर्द होते हैं ।
किसी भंवरे की सूरत,
गुल की खुशबू लूट लेते हैं।
सुनो तुमको कसम मेरी,
रिवायत तोड़ देना तुम ।
न तनहा छोड़ देना तुम,
न ये दिल तोड़ देना तुम ।
मगर फिर यूं हुआ हमदम,
मुझे अनजान रस्ते पर,
अकेला छोड़ कर उसने,
मेरा दिल तोड़ कर उसने,
मोहब्बत छोड़ दी उसने।
वफ़ा है ज़ात औरत की,
रिवायत तोड़ दी उसने ।
वफ़ा है ज़ात औरत की।
मगर जो मर्द होते हैं,
बहुत बेदर्द होते हैं ।
किसी भंवरे की सूरत,
गुल की खुशबू लूट लेते हैं।
सुनो तुमको कसम मेरी,
रिवायत तोड़ देना तुम ।
न तनहा छोड़ देना तुम,
न ये दिल तोड़ देना तुम ।
मगर फिर यूं हुआ हमदम,
मुझे अनजान रस्ते पर,
अकेला छोड़ कर उसने,
मेरा दिल तोड़ कर उसने,
मोहब्बत छोड़ दी उसने।
वफ़ा है ज़ात औरत की,
रिवायत तोड़ दी उसने ।
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