भले दिनों की बात थी, भली सी एक शक्ल थी
ना ये कि हुस्ने ताम हो, ना देखने में आम सी| [हुस्न ताम - पूरा शबाब]
ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे [कहकशां - आकाशगंगा]
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे|
कोई भी रुत हो उसकी छब, फ़जा का रंग रूप थी
वो गर्मियों की छांव थी, वो सर्दियों की धूप थी|
ना मुद्दतों जुदा रहे, ना साथ सुबहो शाम हो
ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद, ना ये कि इज्ने आम हो| [इज्ने आम - सभी को इजाजत]
ना ऐसी खुश लिबासियां, कि सादगी हया करे
ना इतनी बेतकल्लुफ़ी, की आईना हया करे| [हया - शर्म]
ना इखतिलात में वो रम, कि बदमजा हो ख्वाहिशें [इखतिलात - दोस्ती, रम - वहशत]
ना इस कदर सुपुर्दगी , कि ज़िच करे नवाजिशें|
ना आशिकी ज़ुनून की, कि ज़िन्दगी अजाब हो
ना इस कदर कठोरपन, कि दोस्ती खराब हो|
कभी तो बात भी खफ़ी, कभी सुकूत भी सुखन [खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी]
कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां, कभी उदासियों का बन| [किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी]
सुना है एक उम्र है, मुआमलाते दिल की भी
विसाले-जाँफ़िजा तो क्या, फ़िराके-जाँ-गुसल की भी|
[विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन, फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी]
सो एक रोज क्या हुआ, वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं इश्क को अमर कहूं , वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई|
मैं इश्क का असीर था, वो इश्क को कफ़स कहे [असीर - कैदी, कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना]
कि उम्र भर के साथ को, वो बदतर अज़ हवस कहे| [अज हवस - हवस से भी खराब]
शजर हजर नहीं कि हम, हमेशा पा ब गिल रहें [शजर - पेड, हजर - पत्थर, पा-ब-गिल - विवश]
ना ढोर हैं कि रस्सियां, गले में मुस्तकिल रहें| [मुस्तकिल - लगातार]
मोहब्बतें की वुसअतें, हमारे दस्तो पा में हैं [वुसअतें - लम्बाई/ चौड़ाई, दस्तो-पा - हाथ/ पैर
बस एक दर से निस्बतें, सगाने-बावफ़ा में हैं| [निस्बतें - संबन्ध, सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते]
मैं कोई पेन्टिंग नहीं, कि एक फ़्रेम में रहूं
वही जो मन का मीत हो, उसी के प्रेम में रहूं|
तुम्हारी सोच जो भी हो, मैं उस मिजाज की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है, ये बात आज की नहीं|
न उसको मुझपे मान था, न मुझको उसपे ज़ोम ही [ज़ोम - गुमान]
जो अहद ही कोई ना हो, तो क्या गमे शिकस्तगी| [अहद - वचन बद्धता, गमे शिकस्तगी - टूटने का गम]
सो अपना अपना रास्ता, हंसी खुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी, मैं अपनी राह चल दिया|
भली सी एक शक्ल थी, भली सी उसकी दोस्ती
अब उसकी याद रात दिन, नहीं, मगर कभी कभी|
ना ये कि हुस्ने ताम हो, ना देखने में आम सी| [हुस्न ताम - पूरा शबाब]
ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे [कहकशां - आकाशगंगा]
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे|
कोई भी रुत हो उसकी छब, फ़जा का रंग रूप थी
वो गर्मियों की छांव थी, वो सर्दियों की धूप थी|
ना मुद्दतों जुदा रहे, ना साथ सुबहो शाम हो
ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद, ना ये कि इज्ने आम हो| [इज्ने आम - सभी को इजाजत]
ना ऐसी खुश लिबासियां, कि सादगी हया करे
ना इतनी बेतकल्लुफ़ी, की आईना हया करे| [हया - शर्म]
ना इखतिलात में वो रम, कि बदमजा हो ख्वाहिशें [इखतिलात - दोस्ती, रम - वहशत]
ना इस कदर सुपुर्दगी , कि ज़िच करे नवाजिशें|
ना आशिकी ज़ुनून की, कि ज़िन्दगी अजाब हो
ना इस कदर कठोरपन, कि दोस्ती खराब हो|
कभी तो बात भी खफ़ी, कभी सुकूत भी सुखन [खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी]
कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां, कभी उदासियों का बन| [किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी]
सुना है एक उम्र है, मुआमलाते दिल की भी
विसाले-जाँफ़िजा तो क्या, फ़िराके-जाँ-गुसल की भी|
[विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन, फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी]
सो एक रोज क्या हुआ, वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं इश्क को अमर कहूं , वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई|
मैं इश्क का असीर था, वो इश्क को कफ़स कहे [असीर - कैदी, कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना]
कि उम्र भर के साथ को, वो बदतर अज़ हवस कहे| [अज हवस - हवस से भी खराब]
शजर हजर नहीं कि हम, हमेशा पा ब गिल रहें [शजर - पेड, हजर - पत्थर, पा-ब-गिल - विवश]
ना ढोर हैं कि रस्सियां, गले में मुस्तकिल रहें| [मुस्तकिल - लगातार]
मोहब्बतें की वुसअतें, हमारे दस्तो पा में हैं [वुसअतें - लम्बाई/ चौड़ाई, दस्तो-पा - हाथ/ पैर
बस एक दर से निस्बतें, सगाने-बावफ़ा में हैं| [निस्बतें - संबन्ध, सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते]
मैं कोई पेन्टिंग नहीं, कि एक फ़्रेम में रहूं
वही जो मन का मीत हो, उसी के प्रेम में रहूं|
तुम्हारी सोच जो भी हो, मैं उस मिजाज की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है, ये बात आज की नहीं|
न उसको मुझपे मान था, न मुझको उसपे ज़ोम ही [ज़ोम - गुमान]
जो अहद ही कोई ना हो, तो क्या गमे शिकस्तगी| [अहद - वचन बद्धता, गमे शिकस्तगी - टूटने का गम]
सो अपना अपना रास्ता, हंसी खुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी, मैं अपनी राह चल दिया|
भली सी एक शक्ल थी, भली सी उसकी दोस्ती
अब उसकी याद रात दिन, नहीं, मगर कभी कभी|