
आज फिर वो मेरे ख्वाबों में आया,
आज फिर उसने मुझे नींद से जगाया !
जाने कब होंगे ख़तम ये सिलसिले उसकी आहट के,
जाने कब होंगे सपने पूरे उस अधूरी चाहत के !!
कायल था जो कभी मेरी मगरूम मोहब्बत का,
लफ्ज़-ए-बयां कराती थी उसे अहसास ज़न्नत का !
पर जाने कब बदले ये सिलसिले उस सुकून और राहत के,
जाने कब होंगे सपने पूरे उस अधूरी चाहत के !!
नहीं है नाता अब कोई, मेरा और उस परछाईं का,
फिर अब भी क्यूँ हैं वो शहज़ादा मेरे ख्वाबों और तन्हाई का !
जाने कब हटेंगे काले बदरा उस बेरहम शराफत के,
जाने कब होंगे सपने पूरे उस अधूरी चाहत के !!
Original Post: Ankita's Facebook Page
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