Saturday, September 10, 2011

सफ़र की हद है वहां तक के कुछ निशाँ रहे

सफ़र की हद है वहां तक के कुछ निशाँ रहे
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे|

ये क्या, उठाये क़दम और आ गई मंजिल
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे|

वो शख्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है
तुम उस को दोस्त समझते हो, फिर भी ध्यान रहे|

मुझे ज़मीन की गहराइयों ने दाब लिया
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे|

अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है
मगर ये बात हमारे ही दरमियान रहे|

मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई
मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे|

वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा
दुआ करो के सलामत मेरी ज़बान रहे|

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