बादल जो गरजते हैं, बरसा नहीं करते,
मोहसिन कभी एहसान का चर्चा नहीं करते||
आँखों में बसा लेते हैं टूटे हुए मंजर,
जाते हुए लोगों को पुकारा नहीं करते||
कहते हैं चुप-चाप से रहते हैं वो अक्सर,
जुल्फें भी, सुना है वो, संवारा नहीं करते||
हम गोशा-ए-तन्हाई में रोते हैं जी भर के,
हम शहर की गलियों में तमाशा नहीं करते||
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