Thursday, November 24, 2011

हक़

हुस्न की धूप, प्यार की बयार दे दो तुम,
ऐ खुदा ! वो सुबह एक बार दे दो तुम ।

उसको पाकर ही मेरे दिल को चैन आएगा
मेरा सुकून वो मेरा करार दे दो तुम |

शहर फिजूल है, ये शहर अपने पास रखो
इंतेजा है कि बस कूचा-ए-यार दे दो तुम |

बड़े दिनों के हैं ताल्लुकात तेरे मेरे
दोस्ती निभाओ, अमां यार दे दो तुम |

मेरे जीने का फैसला तुझे ही करना है
मुझे घर दो चाहे मज़ार दे दो तुम |

मेरा हक़ है जो मांगा है मैंने तुझसे खुदा
मैंने कब मांगा के मुझको उधार दे दो तुम | ~S.VIKRAM

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