इस से पहले कि, सजा मुझको मुक़र्रर हो जाये,
उन हंसी जुर्मों की, जो सिर्फ मेरे ख्वाब में हैं|
इस से पहले कि मुझे रोक ले ये सुर्ख सुबह,
जिस कि शामों के अँधेरे मेरे आदाब में हैं|
अपनी यादों से कहो, छोड़ दें तन्हा मुझ को,
मैं परीशाँ भी हूँ और खुद में गुनाहगार भी हूँ |
इतना एहसान तो जायज़ है मेरी जाँ मुझ पर,
मैं तेरी नफरतों का पाला हुआ प्यार भी हूँ|| ~ डॉ. कुमार विश्वास
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