Thursday, March 8, 2012

...जी चाहता है

कभी अपनी हँसी पर भी आता है गुस्सा
कभी सारे जहाँ को हँसाने को जी चाहता है।
कभी छुपा लेते है ग़मों को दिल के किसी कोने में,
कभी किसी को सब कुछ सुनाने को जी चाहता है।
कभी रोता नहीं दिल टूट जाने पर भी,
और कभी बस यूँही आँसू बहाने को जी चाहता है।
कभी हँसी सी आ जाती है भीगी यादों में,
तो कभी सब कुछ भुलाने को जी चाहता है।
कभी अच्छा सा लगता है आज़ाद उड़ना कहीं,
कभी किसी की बाँहों में सिमट जाने को जी चाहता है।
कभी सोचते हैं हो कुछ नया इस जिंदगी में,
कभी बस ऐसे ही जिए जाने को जी चाहता है।

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