जिस संजीदगी से किये थे उसने तमाम वादे
काश! निभाने में भी कुछ काम आई होती ....
वादों के टूटने का दर्द और जख्मो की चुभन
काश ! ये बात उसे भी किसी ने समझाई होती
याद में किसी की तमाम रात आँखों में गुजार देना
काश ! करवटों से उसके भी कुछ सलवटे आई होती
अनजाने शहर में किसी के पुकारने की उम्मीद करना
काश ! एक शाम उस ने भी मेरे शहर में बिताई होती|
- Shailesh Gupta
काश! निभाने में भी कुछ काम आई होती ....
वादों के टूटने का दर्द और जख्मो की चुभन
काश ! ये बात उसे भी किसी ने समझाई होती
याद में किसी की तमाम रात आँखों में गुजार देना
काश ! करवटों से उसके भी कुछ सलवटे आई होती
अनजाने शहर में किसी के पुकारने की उम्मीद करना
काश ! एक शाम उस ने भी मेरे शहर में बिताई होती|
- Shailesh Gupta
No comments:
Post a Comment