Tuesday, March 13, 2012

काश ! एक शाम उस ने भी मेरे शहर में बिताई होती|

जिस संजीदगी से किये थे उसने तमाम वादे
काश! निभाने में भी कुछ काम आई होती ....

वादों के टूटने का दर्द और जख्मो की चुभन
काश ! ये बात उसे भी किसी ने समझाई होती

याद में किसी की तमाम रात आँखों में गुजार देना
काश ! करवटों से उसके भी कुछ सलवटे आई होती

अनजाने शहर में किसी के पुकारने की उम्मीद करना
काश ! एक शाम उस ने भी मेरे शहर में बिताई होती|


- Shailesh Gupta

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