Saturday, August 11, 2012

इश्क की बेबसी आ दस्तूर हो गयी

एक ग़लतफहमी थी जो आज मंजूर हो गयी,
तू मेरी नजरों से, और भी दूर हो गयी|
ये तेरी आँखें, जिसमें कभी, शराब से ज्यादा नशा था,
आज वक़्त की मार से बेनूर हो गयीं|
तेरी एक हँसी पर कितने ही हो जाते थे कुर्बान,
किसके गम में तू आज रोने को मजबूर हो गयी?
डोली उठी तो है, पर एक मय्यत साथ लेकर,
इश्क की बेबसी आ दस्तूर हो गयी|

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