Saturday, August 25, 2012

ज़ख्म लिखूँ के माजरा लिखूँ?

ज़ख्म लिखूँ, के माजरा लिखूँ,
याद आया है वो, तो क्या लिखूँ?

हौसला ज़िन्दगी का क्या लिखूँ,
भूल जाने का मरहला लिखूँ?

शिद्दत-ए-इश्क का तकाज़ा है,
कुर्बतों को भी फासला लिखूँ?

उसकी हमराही को बयान करूँ,
या किसी ख़ाक से हवा लिखूँ?

दिल की ख्वाहिश है उसके चेहरे पर,
अपनी तन्हाई की दुआ लिखूँ|

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