Wednesday, March 9, 2011

मुझको शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया,
तुम क्यों उदास हो गए, क्या याद आ गया?
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर,
कुछ यूँ बसर हुयी, के खुदा याद आ गया|
बरसे बिना  ही जो घटा  आगे निकल गयी ,
इक  बेवफा का एहद-ए-वफ़ा याद आ गया|
यूँ चौंक उठे वो , सुनकर मेरा शिकवा,
जैसे उन्हें भी कोई गिला याद आ गया|
हैरत है तुमको देख के मस्जिद में ,
क्या बात हो गयी जो खुदा याद आ गया?

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