हो सकता है जन्नत में हो और भी हसीना,
- अभिजीत
पर वो परीवश चेहरा इस धरती पर कहीं ना|
जानते हो उस महजबीं को मैं आफताब क्यों कहता हूँ?
उसे देख के आता है, माहताब को पसीना|
यही इल्तजा खुदा से, यही आरजू कज़ा से,
कभी ऐसा दिन ना आये, तुझे देखे बिन हो जीना|
उस मय भरी नज़र की शायद है खबर सबको,
कल पैमाने ने कहा मुझसे, उन आखों से अब 'तू' पीना|
मेरी कश्ती-ए-जिन्दगी का डूबना तो तय था
मेरी जिन्दगी थी तुझ बिन, बिन पतवार की सफीना|
बुतों को चाहना भी जाहिद , खुदा परस्ती ही है
मुझे फर्क नहीं कुछ भी, भले तू रख ले मुझसे कीना|
इलाही बता मुझको, मेरी चाहत में कुछ कमी थी,
जो खाब में मैं उसके आ सका कभी ना|| - अभिजीत
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