Sunday, July 17, 2011

इस शहर के लोगों से वफ़ा माँग रहा हूँ

इस शहर के लोगों से वफ़ा माँग रहा हूँ
और सोच मे डूबा हूँ के क्या माँग रहा हूँ

ये सब ने सज़ा रखा है जो अपनी जबीन पर
मैं दिल पे भी इक ऐसा निशाँ माँग रा हूँ

इस सूखे हुए खेत का जो रंग बदल दे
उस रहम की बारिश की दुआ माँग रा हूँ

पत्थर का तलबगार हूँ शीशे क नगर मे
क्या माँग रहा हूँ मैं कहाँ माँग रहा हूँ

तू बाँध के जुल्फों से मुझे दिल मे बिठा ले
मुजरिम हूँ तेरा तुझ से सज़ा माँग रहा हूँ

पहलू में तेरे सिर हो मेरा, मौत जब आए
बस इतना करम वक़्त-ए-नज़ा माँग रहा हूँ

मैं कौन हूँ, क्या हूँ, मैं यहाँ किस लिए आया
मैं खुद से खुद अपना ही पता माँग रहा हूँ

दो लफ्ज़ मेरे नाम भी लिख दे कभी "असीम"
मैं तुझ से वफाओं का सिला माँग रहा हूँ

--असीम कौमी

Source:  http://yogi-collection.blogspot.com/2010/08/blog-post_2983.html

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