जिस सिम्त भी देखूं नजर आता है कि तुम हो,
ऐ जाने-जहां ये कोई तुमसा है कि तुम हो !
ये ख्बाब है खूशबू है, झोंका है कि पल है
ये धुंध है बादल है साया है कि तुम हो !
देखो ये किसी और की आंखें हैं कि मेरी,
देखूं ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो !
ये उम्रे-गुरेजां कहीं ठहरे तो ये जानूं
हर सांस में मुझको यही लगता है कि तुम हो !
इक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूं
इक मौज में आया हुआ दरया है कि तुम हो !
ऐ जाने ‘फराज‘ इतनी भी तौफीक किसे थी
हमको गमे-हस्ती भी गवारा है कि तुम हो !
ऐ जाने-जहां ये कोई तुमसा है कि तुम हो !
ये ख्बाब है खूशबू है, झोंका है कि पल है
ये धुंध है बादल है साया है कि तुम हो !
देखो ये किसी और की आंखें हैं कि मेरी,
देखूं ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो !
ये उम्रे-गुरेजां कहीं ठहरे तो ये जानूं
हर सांस में मुझको यही लगता है कि तुम हो !
इक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूं
इक मौज में आया हुआ दरया है कि तुम हो !
ऐ जाने ‘फराज‘ इतनी भी तौफीक किसे थी
हमको गमे-हस्ती भी गवारा है कि तुम हो !
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