रेज़ा-ए-कांच की सूरत मैं बिखर जाता हूँ
मैं उसकी याद में जब हद से गुज़र जाता हूँ
अब गुरेज़ाँ है वो मिलने से जो कहता था कभी
तुमसे मिलते ही मैं कुछ और निखर जाता हूँ
रोज खाता हूँ उसको याद न करने की क़सम
रोज वादों से अपने ही मुकर जाता हूँ
मुझको तमाशा बना दिया है मोहब्बत ने उसकी
लोग कसते हैं ताने मैं जिधर जाता हूँ
हर मोड़ पे खाया है मोहब्बत में धोखा अर्श
अब कोई प्यार से पुकारे तो डर जाता हूँ
--अर्श
मैं उसकी याद में जब हद से गुज़र जाता हूँ
अब गुरेज़ाँ है वो मिलने से जो कहता था कभी
तुमसे मिलते ही मैं कुछ और निखर जाता हूँ
रोज खाता हूँ उसको याद न करने की क़सम
रोज वादों से अपने ही मुकर जाता हूँ
मुझको तमाशा बना दिया है मोहब्बत ने उसकी
लोग कसते हैं ताने मैं जिधर जाता हूँ
हर मोड़ पे खाया है मोहब्बत में धोखा अर्श
अब कोई प्यार से पुकारे तो डर जाता हूँ
--अर्श
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