Saturday, August 13, 2011

तुझे दिल में बसाना चाहता हूँ

तुझे दिल में बसाना चाहता हूँ
तुझे अपना बनाना चाहता हूँ|

ज़रा भी दूर हो आँखों से जब तू
मैं मिलने का बहाना चाहता हूँ|

मेरी आँखों में है तस्वीर तेरी
जिसे तुझ को दिखाना चाहता हूँ|

जो गहरी झील सी आँखें है तेरी
मैं इन में डूब जाना चाहता हूँ|

जो बरसों की है दूरी तुझमें मुझमें
 मैं लम्हों में मिटाना चाहता हूँ|

घटा सावन की तू, मैं खेत सूखा
मैं प्यास अपनी बुझाना चाहता हूँ|

ग़मों से उमर भर पाला पड़ा है
मैं अब हँसना-हँसाना चाहता हूँ|

ग़ज़ल है तू मेरी, मैं तेरा शायर
तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ|

No comments:

Post a Comment