Saturday, August 31, 2013

मोहब्बत कम नहीं होती

उसे कहना, बज़ाहिर हूँ,
हवाएं बदली बदली हैं, चमन भी बदला बदला है,
मगर दिल में, तुम्हारी याद का मौसम नही बदला,
तेरी चाहत के फूलों की, अभी खुशबू नहीं बिखरी,
मेरे अन्दर तुम्हारी जात का एहसास बाकी है,
तुम्हारे दम से मेरी जिंदगी में सांस बाकी है,
उसे कहना, मौसम तो बदलते रहते हैं यूं ही,
कभी मौसम बदलने से ये आँखें नम नहीं होतीं,
मोहब्बत कम नहीं होती, मोहब्बत कम नहीं होती ।

Thursday, August 29, 2013

जीने के लिए तेरी मुलाक़ात चाहिए

खामोश राहों में, तेरा साथ चाहिए,
तन्हा है मेरा हाथ, तेरा हाथ चाहिए,
मुझको मेरे मुक़द्दर पर इतना यकीन तो है,
तुझको भी मेरे लफ्ज़, मेरी बात चाहिए,
मैं खुद अपनी शायरी को क्या अच्छा कहता,
मुझको तेरी तारीफ, तेरी दाद चाहिए,
एहसास-ए-मोहब्बत तेरे वास्ते हैं लेकिन,
जूनून-ए-इश्क को तेरी सौगात चाहिए,
तुम मुझको पाने की कोशिश रखते हो लेकिन,
जीने के लिए तेरी मुलाक़ात चाहिए ।

Saturday, August 24, 2013

तुम्हारा दिल जो है जाना, हमारे नाम कर देना

तुम्हारा दिल जो है जाना,
हमारे नाम कर देना,
जरूरत ग़र पड़ी मुझको,
तो मैं कुछ और माँगूँगा,
ना जान माँगूँगा ,
ना पहचान माँगूँगा,
छोटी सी गुजारिश है,
तुम्हारा साथ माँगूँगा,
अगर नाराज कर दोगे,
मैं तुमसे रूठ जाऊँगा,
बुलाना भी अगर चाहो,
मैं वापिस ही ना आऊंगा,
मैं हस आस लड़का हूँ,
मेरा दिल टूट जायेगा,
बहुत रोना भी आएगा,
अगर तुम मान जाओगे,
ख़ुशी से झूम जाऊंगा,
तुम्हें अपना बनाऊंगा,
अगर नज़र-ए-करम होतो,
मेरा एक काम कर देना,
तुम्हारा दिल जो है जाना,
हमारे नाम कर देना ।

Thursday, August 15, 2013

कोई ढूँढ ऐसा हमसफ़र

कोई ढूँढ ऐसा हसफ़र,
जिसे तू  अपना बना सके,
तू कहे कि रात है, और,
वो चाँदनी लुटा सके,
तेरे आंसुओं को समेट ले,
के कोई न तुझको रुला सके,
तेरी राह में जो हों मुश्किलें,
अपनी पलकों से हटा सके,
तुझे रख ले अपने हिस्से में,
कि तुझको ना कोई चुरा सके,
वो हो तेरे इतना करीब के,
किसी और की याद ना आ सके,
कोई ढूँढ ऐसा हमसफ़र।।।

Monday, August 12, 2013

मैंने जिंदगी को गवाँ दिया

वो समर था मेरी दुआओं का,
उसे किसने अपना बना लिया,
मेरी नींद किसने उजाड़ दी,
मेरा ख्वाब किसने चुरा लिया,
तुझे क्या बताऊँ ए दिल-नशीं,
तेरे इश्क में, तेरी याद में,
कभी गुफ्तगू रही फूल से,
कभी चाँद छत पे बुला लिया,
मेरी चाँद होने की हसरतें,
मेरी खुशबू होने की ख्वाहिशें,
तू जुदा हुआ तो यूं लगा,
मैंने जिंदगी को गवाँ दिया ।

Tuesday, July 23, 2013

तुम सिर्फ रस्में निभाने के लिए मत आना

अब अगर आओ, तो जाने के लिए मत आना,
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना,
मैंने पलकों पे तमन्नायें सजा रक्खी हैं,
दिल पर उम्मीद की सौ रस्में जला रक्खी हैं,
ये हसीं शामें बुझाने के लिए मत आना,
प्यार की आग में जंजीर पिघल सकती हैं,
चाहने वालों की तकदीरें बदल सकती हैं,
हूँ बेबस ये बताने के लिए मत आना,
मुझसे मिलने की अगर तुमको नहीं चाहत कोई,
तुम सिर्फ रस्में निभाने के लिए मत आना

Sunday, July 21, 2013

चलो तुम साथ मत देना

चलो तुम साथ मत देना,
मुझे बेशक भुला देना,
नए सपने सजा लेना,
नए रिश्ते बना लेना,
भुला देना सभी वादे,
सभी कसमें, सभी नाते,
तुम्हें जानाँ इजाजत है,
जो दिल चाहे वो सब करना,
मगर अब तुम किसी से भी,
अधूरा प्यार मत करना ।

Monday, July 15, 2013

कोई दीवार रहने दो

कोई दीवार रहने दो,
फ़क़त इज़हार रहने दो,
सफ़र में साथ चलकर भी,
मुझे इस पार रहने दो,
ना आँखों में सजाओ तुम,
ना मुझको ख़ाक होने दो,
ना तरसें तुम्हारी कुर्बत को,
मुझे बे-बाक रहने दो।
मुझे असआर में लिखो,
मगर न गुनगुनाओ तुम,
किताबों में कहीं रखकर,
मुझे फिर भूल जाओ तुम,
सुनो तुमसे ये कहना है,
सफ़र में धूल होने तक,
कोई भी भूल होने तक,
मुझे तुम माँग लेना बस,
दुआ मक़बूल होने तक |

Sunday, July 14, 2013

अभी वक़्त हैं इन्हें छोड़ जा

ये सफ़र नहीं अज़ाब है,
यहाँ हर किसी पैर नकाब है,
यहाँ बद-गुमानी का राज़ है,
यहाँ बेवफाई रिवाज़ है,
अभी होश खोने के दिन नहीं,
अभी तेरे रोने के दिन नहीं,
अभी वक़्त है इन्हें छोड़ जा,
अभी सारी नगरी अंधेर है,
अभी दिन निकलने में देर है,
अभी बहार-ए-इश्क में ना उतर,
अभी शहर सारा है बेखबर,
अभी वक़्त है इन्हें छोड़ जा,
अभी वक़्त हैं इन्हें छोड़ जा ।

Saturday, June 29, 2013

मोहब्बत कम नहीं होती

किसी के पास आने से, या किसी के दूर जाने से,
मोहब्बत कम नहीं होती किसी को आजमाने से,
जिन्हें हम याद रखते हैं वो हम को भूल जाते हैं,
नहीं होता असर इन पर अब अश्कों को बहाने से,
दिल-ए-बेताब में सूरत तेरी ऐसी सजल है,
कभी मिट नहीं सकती किसी के मिटाने से,
बिछड़ना था मुक़द्दर में, किसी से क्या गिला मगर,
नहीं शिकवा मुक़द्दर से, ना शिक़वा है ज़माने से,
अँधेरी रात है बारिश है और मैं भी तन्हा हूँ,
नहीं हासिल होगा अब इस क़दर दिल जलाने से ।

माटी की कच्ची गागर को क्या खोना क्या पाना बाबा

माटी की कच्ची गागर को क्या खोना क्या पाना बाबा,
माटी को माटी है रहना, माटी में मिल जाना बाबा |

हम क्या जानें दीवारों से कैसे धूप उतरती होगी,
रात रहे बहार जाना है, रात गए घर आना बाबा |

जिस लकड़ी को अन्दर-अन्दर दीमक बिलकुल चाट चुकी हो,
उसको ऊपर चमकाना, राख पे धूप जमाना बाबा |

प्यार की गहरी फुन्कारों से सारा बदन आकाश हुआ है,
दूध पिलाना तन डसवाना, है दस्तूर पुराना बाबा |

इन ऊँचे शहरों में पैदल सिर्फ़ दिहाती ही चलते हैं,
हमको बाज़ारों से इक दिन काँधे पर ले जाना बाबा |  ~ बशीर बद्र

कभी आना तो हल्का सा इशारा देना

कभी अाना तो हल्का सा इशारा देना,
कभी शाम, कभी आँचल का किनारा देना,
मैं अगर डूब के उभरूँ तो सहारा देना,
तेरा उल्फत मैं मुकम्मल हूँ हर पहलू से,
मुझे दर्द भी देना तो सारा देना,
मैं तुझे ग़म के समुन्दर में किनारा दूँगा,
तू मुझे हिज्र के तूफाँ में सितारा देना,
मैं तेरी याद के सेहरा में कहीं रहता हूँ,
कभी आना तो हल्का सा इशारा देना।

Monday, June 24, 2013

कोई रास्ता नही है

इस आरज़ू से आगे,
कोई रास्ता नही है,
तुम्हें किस क़दर है चाहा,
तुम्हें ये पता नहीं है।
कोई पल बिना तुम्हारे,
भला कैसे बीत जाये,
मेरे पास तुम नहीं हो,
मेरे पास कुछ नहीं है।
मेरी हर दुआ का मेहबर,
बस एक आरज़ू तुम्हारी,
इस आरज़ू से आगे,
कोई रास्ता नहीं है ।

Monday, May 27, 2013

तुम्हारे दर्द में देखो तुम्हारा कौन बनता है

यहाँ खामोश नज़रों का नज़ारा कौन बनता है,
बहुत गहरे समुन्दर का किनारा कौन बनता है।
चलो हम देखते हैं, खुद को अब बरबाद करके भी,
के इन बरबादियों में भी, हमारा कौन बनता है।
कोई शीशा अगर टूटे तो वापस जुड़ नहीं सकता,
मोहब्बत में फ़ना होकर दोबारा कौन बनता है।
चलो फिर आजमा लो तुम, सभी अपने प्यारों को,
तुम्हारे दर्द में देखो तुम्हारा कौन बनता है ।

Thursday, May 23, 2013

शाम से आँख में नमी सी है

शाम से आँख में नमी सी है,
आज फ़िर आपकी कमी सी है,
दफ़न कर दो हमें की साँस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,
वक्त रहता नहीं कहीं छुपकर,
इसकी आदत भी आदमी सी है,
कोई रिश्ता नहीं रहा फ़िर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है,

उसे मैंने ही लिखा था

उसे मैंने ही लिखा था, कि
लहजे बर्फ हो जायें ,
तो फिर पिघला नहीं करते,
परिंदे डर के उड़ जायें,
तो फिर लौटा नहीं करते,
उसे मैंने ही लिखा था,
यकीं उठ जाये तो, शायद
कभी वापस नहीं आता,
हवाओं का कोई तूफां,
कभी बारिश नही लाता,
उसे मैंने ही लिखा था, कि
शीशा टूट जाये तो,
कभी फिर जुड़ नही पाता,
जो रस्ते से भटक जाये,
वो वापस मुड़ नहीं पाता
उसे कहना वो बेमानी, अधूरा ख़त,
उसे मैंने ही लिखा था,
उसे कहना की दीवाने,
मुकम्मल ख़त नहीं लिखते। 

Sunday, May 19, 2013

जुदा होना भी पड़ता है

जुदा होने के मौसम में, जुदा होना भी पड़ता है,
जिसे मुश्किल से पाया हो, उसे खोना भी पड़ता है।
खुदी पे मान इतना है, कभी मुड़कर नहीं देखा,
जिसे कह दूँ कि मेरा है, उसे होना भी पड़ता है।
अभी तो फसल-ए-गुल हो,  मिसल-ए-गुल हो जेहन में रखना,
कि जब वक्त-ए-खिजा आये, तो फिर रोना भी पड़ता है।
मुझे नींदें नहीं भातीं, कि मिसल-ए-मार्ग होती हैं,
मगर इक ख्वाब के लालच में, फिर सोना भी पड़ता है।
हमेशा हँसता रहता हूँ छुपा के ग़म ज़माने से,
मगर जब नाम तेरा आये, तो रोना भी पड़ता है।

Friday, May 17, 2013

नया दर्द एक दिल में जगा कर चला गया

नया दर्द एक दिल में जगा कर चला गया
कल फिर वो मेरे शहर में आ कर चला गया

जिसे ढूँढ़ते रहे हम लोगों की भीड़ में
मुझसे वो अपने आप को छुपा कर चला गया

मैं उसकी खामोशी का सबब पूछता रहा
वो किस्से इधर उधर के सुना कर चला गया

ये सोचता हूँ के मैं कैसे भुलाऊंगा अब उसे
उस शक्स को जो मुझको पल भर में भुला कर चला गया|

कैसे कोई छुपाये आंसू

कैसे कोई छुपाये आंसू
आखिर आँख में आये आंसू

तुझको ये मालूम नहीं
कितने रात बहाए आंसू

दर्द की लज़्ज़त और बढ़ी
जब आंसू में मिलाए आंसू

Sunday, March 31, 2013

बस तेरी याद रहती है

ज़ेहन के ख्यालों में,
रूह के उजालों में,
जिंदगी की झीलों में,
ज़ात की फसीलों में,
रतजगों के दामन में,
ख्वाहिशों के आँगन में,
दिल के खुश्क सेहरा में,
चस्म-ए-तर के दरिया में,
दर्द के जहाँ में भी,
अश्क-ए-बेजुबां में भी,
और कुछ नहीं रहता,
बस तेरी याद रहती है। 

Wednesday, January 9, 2013

अज़ाब ये भी, किसी और पर नहीं आया

अज़ाब ये भी, किसी और पर नहीं आया,
कि, एक उम्र चले, और घर नहीं आया।
उस एक ख्वाब की हसरत में जल-बुझी आँखें,
वो एक ख्वाब, कि अब तक नज़र नहीं आया।
करें तो किस से करें, ना-रासाईयों का गिला,
सफ़र तमाम हुआ, हमसफ़र नहीं आया।
दिलों की बात, बदन की ज़बान से कह देते,
ये चाहते थे मगर, दिल इधर नहीं आया।
अजीब ही था दौर-ए-गुमराही का 'रफ़ीक',
बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया।
हारिम-ए-लफ्ज़-ओ-म'आनी से निसबतें भी रहीं,
मगर सलीका-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं आया।