अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिये है
कुछ शेर फ़कत उनको सुनने के लिये है
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिये है
आँखो में जो भर लोगे तो काँटो से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिये है
देखुं जो तेरे हाथों को लगता है तेरे हाथ
मन्दिर में फ़कत दीप जलने के लिये है
सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वर्ना तो बदन आग बुझाने के लिये है|
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