Sunday, January 9, 2011

वक़्त वो गुज़र गया...


"वक़्त वो गुज़र गया,
जब सुबह का शुभारम्भ हो या नींद का आगाज़ उनकी, हमसे बात किये बिना वो करते नहीं थे|
वक़्त एक आज है,
जब हम महरूम हैं याद करने के हक से, और वो भी बात न करने की सौगंध खाए बैठे हैं|
वक़्त ये भी गुज़र जाये,
अभी तो, इस रात की सुबह के इंतज़ार में हम, पथराई आँखों से टकटकी लगाये बैठे हैं|"

--------

अपनी मुहब्बत का इज़हार करने की खातिर,
हमने उनको खत लिखा, ख़त में दिल अपना उड़ेल दिया..
उनको पढवाने के लिए, सहारा 'correction' के नाम का लिया
उन्होंने भी ख़त पढ़ा और दे दिया वापस लाकर,...
'तुम्हारी तो English बहुत सुधर गयी है', वो कहते हैं खुश होकर|
अब सोचता हूँ में की खुश होऊ या रोऊ ये सुनकर |


-----

"पथरा गयी, हुयी लाल आँखें,
हर रोज मोबाइल चैक करती करती|
लेकिन खुदा को ख़ुशी हमारी,
अभी तक तो हुई मंजूर नहीं|
करें तो क्या; वो मोहतरमा भी, 
उनके पास कम्वख्त वक़्त ही नहीं|
कर सकते नहीं याद हम भी,
क्यूंकि हक हमें है, याद करने का नहीं|"

---------

बात हुयी जब आखिरी दफा उनसे, तब से वो हो गये रुसवा हैं...
और अब हम बात न करने का अल्टीमेटम पाए बैठे हैं..
भरोसा नहीं अपने मासूम दिल पर कि कब बात करने को मचल जाये और नंबर dial करने लग जाये :-(
इसी के डर से हम अपने contacts में से उनका नंबर मिटाए बैठे हैं|
.....
अब तो हम अपने दिल को समझा चुके हैं
बिलकुल भी याद न करने के लिए मना चुके हैं..
सुनकर हमारा नाम नहीं लगता उनको अच्छा, हम भी ये जानते हैं ...
इसीलिए उन्हें अपनी याद न दिलाने का जतन लगाये हैं |


 Composed by: Forgotten

No comments:

Post a Comment