वो चांदनी का बदन, खुशबुओं का साया है|
बहुत अज़ीज़ हमें है, मगर पराया है||
उतर भी आओ कभी, आसमान के जीने से |
तुम्हें खुदा ने, हमारे लिए बनाया है ||
उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं |
उसे ज़माने ने, शायद बहुत सताया है ||
तमाम उम्र मेरा दम उसी धुएँ से घुटा |
वो इक चराग था, मैंने उसे बुझाया है ||
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