Friday, May 6, 2011

...वो इक चराग था...

वो चांदनी का बदन, खुशबुओं का साया है|
बहुत अज़ीज़ हमें है, मगर पराया है||

उतर भी आओ कभी, आसमान के जीने से |
तुम्हें खुदा ने, हमारे लिए बनाया है ||

उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं |
उसे ज़माने ने, शायद बहुत सताया है ||

तमाम उम्र मेरा दम उसी धुएँ से घुटा |
वो इक चराग था, मैंने उसे बुझाया है ||

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