Sunday, May 15, 2011

..जरूरत नहीं रही

रूठने की अदा तो हमको भी आती है,
मगर काश कोई होता हमें भी मनाने वाला,

किसी के प्यार में गहरी चोट खायी है,
वफ़ा से पहले ही बेवफाई पाई है|
लोग तो दुआ मांगते हैं मरने की,
पर हमने उसकी याद में जीने की कसम खायी है|

दुश्मनों में भी दोस्त मिला करते हैं,
काँटों में भी फूल खिला करते हैं|
हमको कांटा समझ कर छोड़ न देना,
कांटे ही फूल की हिफाज़त किया करते हैं|

अब क्या कहे तुझको मोहब्बत नहीं रही,
तेरी तलब में पहली सी सिद्दत नहीं रही|
क्या तेरी वफाओं का मौसम बदल गया,
या तुझको मेरी मोहब्बत की जरूरत नहीं रही|

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