Sunday, May 22, 2011

ए मेरी मोहब्बत सुनो, मैं ये मशवरा दूंगा

मेरी मोहब्बत सुनो, मैं ये मशवरा दूंगा,
तू मुझे भुला देना, मैं तुझे भुला दूंगा|
मिट चुकी हैं उम्मीदें, फूल दिल में खिलने की,
आखिरी घड़ी आई, आज तुझसे मिलने की|
याद करके तू; मुझको, आंखे नम नहीं करना,
देख इस जुदाई का कोई ग़म नहीं करना|
सिलसिले तो बनते हैं, बन के टूट जाते हैं,
ज़िन्दगी में ये लम्हे सबको आजमाते हैं|
हमसे, पहले, बिछड़े हैं और भी ज़माने में,
और भी तो शामिल हैं गम के इस फ़साने में|
ये तो रस्म--दुनिया है, ऐसा होता रहता है,
तू मुझको भुला देना, में तुझको भुला दूंगा|
लिख दिया जो किस्मत ने, वही फासला है ये,
कोई शिकायत है, कोई गिला है ये|
रस्मों के लिए अपनी, कसमें टूट जाने दे,
अब तो यही बेहतर है, साथी छूट जाने दे|
मिल गया जो अब, तुझ को मेहरबान; मुबारक हो
तुझको अपनी खुशियों का ये समां मुबारक हो|
बिखरे हैं मेरे सपने, टूटा है ये दिल मेरा,
टूटे दिल से फिर भी, अब तुझे दुआ दूंगा|
तू मुझे भुला देना, मैं तुझे भुला दूंगा,
अब मैं तुझसे मिलने की आरजू बदल दूंगा|
 ज़ख्मों को दबा लूँगा, हसरतें कुचल लूँगा|
मैं तेरी वफाओं को, दिल्लगी समझ लूँगा,
मेरे हमसफ़र, तुझको, अजनबी समझ लूँगा|
तू मेरा तसब्बर भी, अपने पास मत रखना,
ज़िन्दगी में अब मुझसे कोई आस मत रखना|
मुस्कुराये तू हर दम, बस यही दुआ है मेरी||

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